जोखिम-अनुकूलन मॉडल: वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स से पोर्टफोलियो कैसे बनाएँ?
आज हम सीख रहें हैं जोखिम-अनुकूलन मॉडल: वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स से पोर्टफोलियो कैसे बनाएँ?
जब हम शेयर बाजार में निवेश करते हैं तो सिर्फ “अधिक रिटर्न” की चाह ही नहीं होती साथ-साथ हमें “कम संभव जोखिम” पर भी ध्यान देना होता है।
यही कारण है कि आज निवेशक “जोखिम-अनुकूलन” (Risk Optimisation) की दिशा में भाग रहे हैं।
इस प्रक्रिया में एक प्रमुख उपकरण है वैविएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स (Variance-Covariance Matrix) इसे जान कर हम बेहतर तरीके से समझ सकते हैं
कि विभिन्न स्टॉक्स को मिला कर भी कैसे हम पोर्टफोलियो का जोखिम कम कर सकते हैं और रिटर्न को संतुलित कर सकते हैं।
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वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स क्या है?
“वैरिएंट” (Variance) बताता है कि किसी स्टॉक की रिटर्न (लाभ/हानि) सामान्य से कितनी भिन्न है यानी उतार-चढ़ाव कितना है।
“कॉवैरीएन्स” (Covariance) बताती है कि दो स्टॉक्स की रिटर्न एक-दूसरे के साथ कैसे घूमती है अर्थात् जब एक बढ़े तो दूसरा बढ़े या घटी या उल्टा।
जब हम कई स्टॉक्स को मिला कर एक पोर्टफोलियो बनाते है तो सिर्फ प्रत्येक स्टॉक का उतार-चढ़ाव नहीं बल्कि उनके “साथ-में घूमने का व्यवहार” (कॉवैरीएन्स) भी मायने रखता है।
वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स एक स्क्वायर टेबल है जिसमें हर स्टॉक के लिए “वैरिएन्स” (मैट्रिक्स के मुख्य डायगोनल में) और
हर जोड़ी के लिए “कॉवैरीएन्स” (मेन डायगोनल के बाहर) लिखी होती है।
उदाहरण:
अगर आपके पास 2 स्टॉक्स हैं A और B तो मैट्रिक्स ऐसा होगा:
| A | B | |
|---|---|---|
| A | var(A) | cov(A,B) |
| B | cov(B,A) | var(B) |
यह मैट्रिक्स हमें यह बताती है कि पूरे पोर्टफोलियो में जोखिम कितना होगा।
क्यों यह महत्वपूर्ण है?
अगर हम सिर्फ “अधिक रिटर्न वाले स्टॉक चुनें” लेकिन यह न देखें कि वे कैसे एक-दूसरे के साथ चलते हैं तो जोखिम अनियंत्रित हो सकता है।
अगर दो स्टॉक्स का कॉवैरीएन्स सकारात्मक है (दोनों अक्सर साथ-साथ बढ़ते या घटते हैं) तो आप वास्तव में जोखिम बढ़ा रहे हैं।
जबकि अगर कॉवैरीएन्स नकारात्मक या कम है तो एक स्टॉक गिरते वक्त दूसरा सम्भवतः बच सकता है
इससे पूरे पोर्टफोलियो का जोखिम कम हो सकता है।
यह विचार मूलतः Harry Markowitz की “मीन-वेरिएन्स” (mean-variance) सिद्धांत पर आधारित है जिसमें निवेशक को दिए गए रिटर्न के लिए न्यूनतम जोखिम या दिए गए जोखिम के लिए अधिकतम रिटर्न कैसे मिले यह देखा जाता है।
यानी वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स हमें विभिन्न स्टॉक्स के मतभेदों और सह-चालकों को समझने में मदद करती है ताकि
हम बेहतर “विभिन्नता (diversification)” हासिल कर सकें।
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पोर्टफोलियो जोखिम कैसे मापें मैट्रिक्स से
आइए आसान शब्दों में देखें कि कैसे मैट्रिक्स से पोर्टफोलियो का जोखिम (वैरिएन्स और उससे निकलने वाला स्टैंडर्ड डेविएशन) मापा जाता है |
प्रत्येक स्टॉक के लिए पिछले कुछ समय की रिटर्न निकालें।
उन रिटर्न से प्रत्येक स्टॉक का वेरिएन्स (उतार-चढ़ाव) निकालें।
फिर प्रत्येक जोड़ी स्टॉक्स के लिए कॉवैरीएन्स निकालें यानी स्टॉक A और स्टॉक B की रिटर्न एक-दूसरे के साथ कैसे चलती हैं।
इन आंकड़ों को स्क्वायर मैट्रिक्स रूप में व्यवस्थित करें वह है आपका वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स।
अब यदि आपने प्रत्येक स्टॉक के लिए “वजन” (weight) तय किए हैं अर्थात् आपने पोर्टफोलियो में उसके हिस्से को तय किया है
जैसे स्टॉक A में 40 %, स्टॉक B में 60 % तो पोर्टफोलियो वेरिएन्स = वजन_वेक्टर × मैट्रिक्स × वजन_वेक्टर … (साधारण रूप से)।
इसके बाद पोर्टफोलियो स्टैंडर्ड डेविएशन = वेरिएन्स का वर्गमूल (square-root)।
इस तरह आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि आपकी पोर्टफोलियो में जोखिम कितना है और इसके आधार पर वजन बदल सकते हैं।
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पोर्टफोलियो कैसे बनाएं?
अब हम एक सरल क्रम में देखेंगे कि कैसे आप वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स की सहायता से जोखिम-अनुकूलित पोर्टफोलियो बना सकते हैं |
स्टॉक्स चुनें
पहले आपको चुनने होंगे 3-5 या जितने आप चाहें स्टॉक्स जिनमें आप निवेश करना चाहते हैं।
इनके पिछले 1-3 वर्षों के मासिक या साप्ताहिक रिटर्न निकालें।
आंकड़े तैयार करें
हर स्टॉक के लिए वेरिएन्स निकालें।
हर संभव जोड़ी स्टॉक्स के लिए कॉवैरीएन्स निकालें।
इन्होंने से मैट्रिक्स तैयार करें।
वजन तय करें
शुरुआत में आप सहज वजन (जैसे सभी स्टॉक्स में समान) रख सकते हैं।
उदाहरण: 4 स्टॉक्स है तो प्रत्येक का 25 %।
बाद में जो जोखिम-अनुकूलन करना है, उसके आधार पर इनको समायोजित करेंगे।
वेरिएन्स-कैल्कुलेशन करें
आपके वजन वेरिएन्स-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स में फिट करें गणितीय रूप से ऐसा करें:
वेरिएन्स = wᵀ Σ w (जहाँ w वजन वектор है, Σ मैट्रिक्स है)
इससे आपको पोर्टफोलियो का कुल जोखिम (वैरिएन्स) मिलेगा।
अगर चाहें तो इसके वर्गमूल से स्टैंडर्ड डेविएशन निकालें यह “रिस्क” का मान होगा।
जोखिम-अनुकूलन (Optimization) करें
अब आप अलग-अलग वजन आजमाएँ उदाहरण के लिए स्केन करें कि अगर स्टॉक A का वजन 30 %, B 40 %, C 30 % हो तो जोखिम कितना होगा।
लक्ष्य हो सकता है: इसी रिटर्न के लिए न्यूनतम जोखिम या दिए गए जोखिम पर अधिकतम रिटर्न।
जितना संभव हो कॉवैरीएन्स को कम वाले स्टॉक्स चुनें (वे कम-सह-चालक वाले हों) ताकि पोर्टफोलियो में विविधता बने।
पोर्टफोलियो को समय-समय पर पुनर्संतुलित (Re-balance) करें
हर कुछ-महीनों या साल में पोर्टफोलियो को देखें स्टॉक्स के रिटर्न व कॉवैरीएन्स बदल सकते हैं।
पुराने आंकड़े अब पूरी तरह सही नहीं हो सकते इसलिए पुनर्संतुलन जरूरी है।
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भारत-विशिष्ट सुझाव निवेशकों के लिए
भारतीय शेयर बाजार में कुछ सेक्टर्स या कंपनियाँ ज्यादा सह-चालक (high correlation) हो सकती हैं
जैसे बैंकिंग कंपनियाँ, इंफ्रा कंपनियाँ।
ऐसी जोड़ियों से सावधान हों क्योंकि विविधता कम हो सकती है।
पर्याप्त डेटा उपयोग करें कम अवधि का डेटा पर्याप्त नहीं हो सकता।
कोर पर अपना वजन दें यानी जोखिम-उच्च स्टॉक्स वे हों जिनके साथ आप सहज हैं।
नियम-विधान और खर्च (ब्रोकरेज, टैक्स) को भी ध्यान में रखें क्योंकि जोखिम सिर्फ स्टॉक चलन का नहीं बाहर निकलने की सुविधा का भी होता है।
जोखिम-अनुकूलन मॉडल एक उपकरण है लेकिन भविष्य की गारंटी नहीं देता मार्केट में अचानक बदलाव (सिस्टमिक जोखिम) हो सकता है
जिसे मॉडल पूरी तरह से पकड़ नहीं पाते।
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निष्कर्ष
वैविएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स एक बहुत काम का उपकरण है निवेशक के लिए यह हमें दिखाती है कि
“कैसे अलग-अलग स्टॉक्स एक-दूसरे के साथ चलते हैं” और इसके आधार पर हम “विभिन्नता” हासिल कर सकते हैं।
इससे सिर्फ उच्च रिटर्न की चाह नहीं बल्कि “कम जोखिम के साथ संतुलित” पोर्टफोलियो तैयार करना संभव हो पाता है।
अगर आप इस मॉडल को समझकर अपने पोर्टफोलियो में लागू करें स्टॉक चुनें, आंकड़े देखें, वजन तय करें,
पुनर्संतुलन करें तो आप निवेश की दिशा में एक समझदारी भरा कदम उठा सकते हैं।
FAQs
वैरिएंट-कॉवैरीएन्स मैट्रिक्स क्या है?
यह एक टेबल है जिसमें हर स्टॉक का वेरिएन्स और हर जोड़ी स्टॉक्स की कॉवैरीएन्स लिखी होती है।
यह मैट्रिक्स निवेश के लिए क्यों जरूरी है?
क्योंकि इससे समझ आता है कि विभिन्न स्टॉक्स एक-दूसरे के साथ कैसे चलते हैं और विविधता (diversification) कैसे बेहतर हो सकती है।
वेरिएन्स और कॉवैरीएन्स में क्या फर्क है?
वेरिएन्स एक स्टॉक की रिटर्न का उतार-चढ़ाव दिखाती है; कॉवैरीएन्स बताती है कि दो स्टॉक्स की रिटर्न एक-दूसरे के साथ कैसे बदलती है।
अगर दो स्टॉक्स का पॉजिटिव कॉवैरीएन्स है तो क्या गलती हो रही है?
हाँ, ऐसा मतलब हो सकता है कि दोनों स्टॉक्स साथ-सात बढ़ते या घटते हैं इससे जोखिम कम नहीं होगा, विविधता कम हो जाएगी।
पोर्टफोलियो वेरिएन्स कैसे निकालते हैं?
पहले वजन (weights) तय करें फिर मैट्रिक्स तैयार करें उसके बाद वजन व मैट्रिक्स से वेरिएन्स = wᵀ Σ w निकालें।
क्या यह मॉडल सिर्फ बड़े निवेशकों के लिए है?
नहीं, यह हर निवेशक के लिए उपयोगी है हालांकि डेटा-संसाधन और समय-व्यय हो सकता है।
केवल इस मॉडल से जोखिम पूरी तरह खत्म हो जाएगा क्या?
नहीं। यह जोखिम को कम कर सकता है लेकिन नहीं हटा सकता मार्केट में भी अप्रत्याशित घटनाएँ होती हैं।
कितने स्टॉक्स रखें चयनित?
कोई पक्का नंबर नहीं है; लेकिन आमतौर पर 5-10 से ज्यादा रखें ताकि विविधता अच्छी हो और बहुत कम न हो।
प्रतिशत वजन (weights) कैसे तय करें?
शुरुआत में समान वजन रख सकते हैं फिर जोखिम-अनुकूलन मॉडल या सामग्री के अनुसार वजन बदल सकते हैं उदाहरण के लिए कम-कॉर्रेलेशन वाले स्टॉक्स को अधिक वजन देना।
इस मॉडल को नियमित रूप से कब अपडेट करें?
हर 6-12 महीने में या जब आंकड़े बहुत बदल जाएँ जैसे किसी सेक्टर में बड़ा झटका आया हो, तो पुनर्संतुलन जरूर करें।
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